Proba-3 Mission: नमस्कार दोस्तों 4 दिसंबर को इसरो के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के प्रोबा-3 मिशन को लॉन्च किया गया। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के बारे में गहराई से अध्ययन करना और अंतरिक्ष मौसम पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करना है। यह मिशन इसरो और ESA के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।अधिक जानकारी के लिए अंत तक अवश्य पढ़ें।
Proba-3 Mission क्या है खास?
Proba-3 Mission, 4 दिसंबर 2024 को इसरो द्वारा श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया, सौर अनुसंधान और अंतरिक्ष मौसम की समझ को गहराई देने वाली एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और इसरो की व्यावसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के सहयोग का परिणाम है। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य की कोरोना, यानी उसकी बाहरी परत का अध्ययन करना है।
Proba-3 Mission अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नई संभावनाओं को दर्शाता है और सटीक संरचना उड़ान तकनीक (Precision Formation Flying Technology) का पहला बड़ा प्रदर्शन है। यह मिशन वैज्ञानिकों को सूर्य के बारे में नई और सटीक जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ अंतरिक्ष मौसम पर गहन शोध के अवसर प्रदान करेगा। इस मिशन से मिली जानकारी पृथ्वी के पावर ग्रिड और संचार प्रणाली को अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों से बचाने में सहायक होगी।
Proba-3 Mission का उद्देश्य
Proba-3 Mission का मुख्य उद्देश्य सूर्य की बाहरी परत, यानी कोरोना का अध्ययन करना है। सौर कोरोना सूर्य की सतह की तुलना में हजारों गुना गर्म होती है और अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं का मुख्य स्रोत है। मिशन में दो उपग्रह, कोरोनाग्राफ और ऑकल्टर, शामिल हैं, जो मिलकर “सोलर एक्लिप्स ऑन डिमांड” तकनीक का उपयोग करते हुए कोरोना का अध्ययन करेंगे।
ऑकल्टर सूर्य के डिस्क को छिपाएगा, जबकि कोरोनाग्राफ उसकी बाहरी परत का गहन विश्लेषण करेगा। यह तकनीक वैज्ञानिकों को निरंतर सौर कोरोना का अवलोकन करने में सक्षम बनाएगी, जो सामान्यत: केवल सूर्य ग्रहण के दौरान ही संभव होता है। इस मिशन से वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष मौसम को प्रभावित करने वाली सौर गतिविधियों की बेहतर समझ प्राप्त होगी और नई ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास में मदद मिलेगी।
Proba-3 Mission की 10 महत्वपूर्ण बातें
इसरो का पीएसएलवी-एक्सएल लॉन्च वाहन
4 दिसंबर को शाम 4:08 बजे Proba-3 Mission को इसरो के भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV-XL) के जरिए लॉन्च किया गया। यह पीएसएलवी का 61वां मिशन और पीएसएलवी-XL संस्करण का 26वां मिशन है।
लॉन्च का समय और स्थान
यह मिशन श्रीहरिकोटा के पहले लॉन्चपैड से किया गया। लॉन्च के लगभग 18 मिनट बाद 44.5 मीटर ऊंचा यह रॉकेट 550 किलोग्राम वजनी प्रोबा-3 उपग्रहों को उच्च पृथ्वी कक्षा (High Earth Orbit) में स्थापित करेगा।
दो उपग्रहों की संरचना
Proba-3 Mission में दो उपग्रह शामिल हैं:
- कोरोनाग्राफ (310 किलोग्राम)
- ऑकल्टर (240 किलोग्राम)
ये उपग्रह मात्र 150 मीटर की दूरी पर एक-दूसरे के साथ उड़ान भरते हुए सूर्य के कोरोना का अध्ययन करेंगे। ऑकल्टर सूर्य के डिस्क को छिपाएगा, जबकि कोरोनाग्राफ सूर्य की बाहरी परत पर ध्यान केंद्रित करेगा।
सौर ग्रहण ऑन डिमांड
यह मिशन “सोलर एक्लिप्स ऑन डिमांड” तकनीक का इस्तेमाल करेगा, जिससे वैज्ञानिक सूर्य की कोरोना का अध्ययन बिना प्राकृतिक ग्रहण की आवश्यकता के कर सकेंगे।
सटीक उड़ान प्रौद्योगिकी का परीक्षण
Proba-3 Mission का मुख्य फोकस सटीक संरचना उड़ान तकनीक का प्रदर्शन करना है। यह प्रौद्योगिकी भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
उपग्रहों की कक्षा और समय
प्रोबा-3 के उपग्रह 19.7 घंटे की कक्षा अवधि के साथ पृथ्वी से 60,530 किलोमीटर की ऊंचाई (एपोजी) और 600 किलोमीटर की न्यूनतम ऊंचाई (पेरिजी) पर स्थापित किए गए हैं।
सूर्य की कोरोना का अध्ययन
यह मिशन सूर्य की बाहरी परत की जानकारी प्रदान करेगा, जो अब तक केवल सूर्य ग्रहण के दौरान ही संभव था। इससे अंतरिक्ष मौसम की बेहतर समझ विकसित होगी।
अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव
सौर कोरोना अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं का मुख्य स्रोत है, जो सैटेलाइट संचार, जीपीएस सिस्टम और पृथ्वी के पावर ग्रिड्स को प्रभावित कर सकती हैं। यह मिशन इन प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा।
सौर गतिविधियों की समझ
मिशन सूर्य की कोरोना से निकलने वाली ऊष्मा और अन्य प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी देगा। यह जानकारी सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष के अन्य क्षेत्रों में नई संभावनाएं पैदा कर सकती है।
प्रोबा सीरीज का हिस्सा
Proba-3 Mission इसरो और ईएसए के बीच सहयोग का हिस्सा है। इससे पहले प्रोबा-1 और प्रोबा-2 पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को 2001 और 2009 में लॉन्च किया गया था।
Proba-3 Mission की तकनीकी विशेषताएं
Proba-3 Mission में उन्नत तकनीकों का उपयोग किया गया है, जिनमें सटीक संरचना उड़ान प्रणाली प्रमुख है। इस प्रणाली में दो उपग्रह 150 मीटर की दूरी पर उड़ान भरते हुए एक बड़े कठोर ढांचे की तरह कार्य करते हैं। इन उपग्रहों में ऑप्टिकल सेंसर और उच्च स्तरीय नेविगेशन सिस्टम शामिल हैं, जो सौर कोरोना का सटीक अवलोकन करने में मदद करते हैं।
कोरोनाग्राफ और ऑकल्टर दोनों उपग्रह मिलकर सूर्य की डिस्क को छिपाकर बाहरी परत का अध्ययन करते हैं। इस तकनीक का उपयोग अंतरिक्ष अनुसंधान के अन्य क्षेत्रों, जैसे ग्रहों और तारों के अध्ययन में भी किया जा सकता है। प्रोबा-3 मिशन न केवल सौर अनुसंधान को नई दिशा देता है, बल्कि यह सटीक संरचना उड़ान तकनीक का भविष्य में अन्य अंतरिक्ष मिशनों में उपयोग सुनिश्चित करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
- सटीक संरचना उड़ान: उपग्रह एक बड़े कठोर ढांचे की तरह काम करेंगे।
- ऑप्टिकल सेंसर: सूर्य की बाहरी परत का सटीक अवलोकन करेंगे।
- सौर कोरोना का अध्ययन: यह तकनीक सूर्य के डिस्क को छिपाकर कोरोना की सटीक जानकारी प्रदान करेगी।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व
Proba-3 Mission सौर अनुसंधान और अंतरिक्ष मौसम की समझ में क्रांति ला सकता है। इस मिशन से वैज्ञानिकों को सूर्य के बाहरी परत की गहराई से जानकारी मिलेगी, जो अब तक केवल सूर्य ग्रहण के दौरान ही संभव थी। यह मिशन अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं, जैसे सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन (CME), को समझने में भी मदद करेगा।
इन घटनाओं का प्रभाव पृथ्वी पर संचार, नेविगेशन और पावर ग्रिड पर पड़ता है। Proba-3 Mission से प्राप्त डेटा भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों की योजना बनाने और पृथ्वी पर तकनीकी प्रणालियों को अंतरिक्ष मौसम के खतरों से बचाने में सहायक होगा। यह मिशन अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में एक बड़ा कदम है और सौर अध्ययन के क्षेत्र में नई संभावनाओं को उजागर करता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग इसरो और ईएसए का प्रयास
Proba-3 Mission इसरो और ईएसए के बीच सफल अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक शानदार उदाहरण है। इस मिशन को लॉन्च करने में इसरो की व्यावसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंतरराष्ट्रीय सहयोग से न केवल मिशन की लागत कम होती है, बल्कि इससे तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान का आदान-प्रदान भी होता है।
इस मिशन ने दिखाया है कि जब दो शक्तिशाली अंतरिक्ष एजेंसियां मिलकर काम करती हैं, तो असंभव लगने वाले लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं। यह सहयोग भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक नई राह खोलता है। प्रोबा-3 मिशन ने साबित किया है कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी न केवल तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देती है, बल्कि यह वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को एक साथ लाने में भी सहायक होती है।
निष्कर्ष
Proba-3 Mission अंतरिक्ष अनुसंधान में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह मिशन न केवल सूर्य की गहराई से जानकारी प्रदान करेगा, बल्कि अंतरिक्ष मौसम और उसके प्रभावों की बेहतर समझ भी विकसित करेगा।
इस मिशन ने दिखाया है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए जटिल तकनीकों और उद्देश्यों को सफलतापूर्वक हासिल किया जा सकता है। प्रोबा-3 मिशन ने सौर अनुसंधान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई स्थापित की है। यह मिशन न केवल वर्तमान वैज्ञानिक समुदाय के लिए उपयोगी है, बल्कि यह भविष्य की अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
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